रविवार, मार्च 14, 2021

खेती -किसानी : भटवानी , भट और डांडे

खेती -किसानी : भटवानी  , भट और डांडे 

काली कुमाऊं के पहाड़ की एक ख़ास डिश है:  भटवानी - ये काले भट्ट से बनता है -
कुमाऊं के अनेक आधुनिक  हिस्सों  (जैसे नैनीताल ) में इसे ठठवानी के नाम से भी जाना  जाता है - या फिर सीधे "रस" | 

तो बात "काले  भट्टों"  की हो रही है |  काले भट (एक तरह का सोयाबीन)  दुनियां के कुछ ही हिस्सों में होते हैं, कुमाऊं उनमें से  एक है |  इसे कुछ "पारी हो रई है " टाइप के महानुभाव  "काली सोया बीन " भी कह सकते हैं - इसमें कोई खास गुरेज नहीं है | 

बात भट बोने  को लेकर है :  पहले बात खेत जोतने की :

खेत सामान्यतया  अच्छे से जोता  जाता है ताकि कहीं पर भी जमीन बंजर ना रह जाय | हल चलने में  निपुण कामदार ये काम अच्छे से ही करते हैं |     बीच में   कहीं भी जमीन  बंजर नहीं छोड़ी जाती |  इस छोड़ी हुई  जमीन का नाम डांडा होता है - ठीक वैसे ही जैसे - जंगलों की पहाड़ियों  को "डांडा -कांडा" कहा जाता है  | 

भट डांडयाना: 

लेकिन आप में  से जो लोग किसानी जानते भी होंगे , उन्हें  भी ये बात नहीं मालुम हो सकती कि भट बोने  के लिए उपयुक्त शब्द "डांडयाना " ही है क्योंकि भट के लिए डांडे छोड़ने पड़ते हैं- वरना बरसात के मौसम में भट उगने की बजाय सड़ जाते है |  भट उस बंजर जमीन के (उठे हुए) हिस्से  में पड़ी थोड़ी बहुत सी  मिटटी में  उग जाते  हैं | 

भट  और मड़ुआ :

भट्ट गोड़ने नहीं पड़ते - निराई से काम चल जाता है (जबकि मड़ुआ गोड़ना  पड़ता है , (और बोना पड़ता है,  डांडयाना  नहीं )) | 

भट चोटयाना  

  बरसात समाप्त होते ही भट सम्हालने का वक्त होता है |  भट निकाल के (मतलब खेतों मैं से भट के पौधे काट के)  सुखाने पड़ते हैं  और सूखने के बाद उन्हें  एक साथ लीपे हुए "खल" में  रख कर घिंघारू के बने धनुषाकार डांगरे से "चूटते"  हैं - इस प्रक्रिया को "भट चोटयाना  "  कहते हैं |  प्रायः  इस प्रक्रिया के उपरांत  ही  भट कट्टे आदि में  भर लिए जाते हैं | 

उरद (मास ) को भी इसी विधि से प्राप्त किया जाता है | 


प्रेम 
मार्च १४, २०२१ 






कोई टिप्पणी नहीं: