मंगलवार, जून 29, 2010

हम उन्हें "सीखना" सिखा देंगे

"हम उन्हें -"सीखना"- सीखा देंगे"
२७ मई, चंपावत के एक स्कूल के एक छोटे से कमरे में, जिसके उपर टीन बुरी तरह से फटफटा रहे थे, प्रोफ़ेसर एम एम पंत हम सब लोगो को समझा रहे थे! सरकारी स्कूलों के उन तमाम बच्चों के साथ हो रही परेशानियों को ध्‍यान से सुनने के बाद ये बता रहे थे: इससे पहले सविद्या के सचिव प्रोफेसर हरी दत्त बिष्ट (जिनके नेतृत्व में सविद्या चल रहा है ) ने इस मीटिंग का आगाज़ करते हुए संस्था के सभी अध्यापकों, जी आई सी चंपावत के गुरुजनों और अन्य गन्यमान्य जनों, सरकारी प्रतिनिधियों का स्वागत किया.

सदस्यों ने भी अपनी राय रखी. अध्यापकों ने अध्धयन-अध्यापन सम्बन्धी परेशानियों से सबको अवगत कराया। जो कुछ सुधार किये जा सकते हैं बताये। ए़क बात जो खरक कार्की के जूनियर है स्कूल के संस्था के अध्यापक ने बतायी, वह नोट करने लायक है: "कक्षा ६ के विद्यार्थियों में दो तरह के छात्र हैं, ए़क तो वो जो, संस्था द्वारा अंगीकृत प्राइमरी स्कूल (खर्क्कार्की) से पढ़े हैं, दूसरे वो, जो अन्य स्कूलों से पढ़कर आये हैं। बाहर से आये बच्चे धीमे हैं। इसलिए, स्कूल ने दो कक्षाएं चला रखी हैं!- ए़क तो सामान्य, दूसरी मैं चीजें दूबारा बताई जाती हैं.".

प्रोफेस्सर पन्त ने इस मीटिंग पर हर्ष जाहिर करते हुए "शिक्षा के अधिकार" की याद दिलाई। उन्होंने बताया कि कैसे "शिक्षा के अधिकार" एवं "सूचना के अधिकार" शिक्षा की प्रगति में सहायक हो सकता है. प्रोफेसर पंत ने इस बात पर ज़ोर दिया की कैसे बच्चों को स्कूल जाने के लिए आकर्सित करने के उपाय करने की ज़रूरत है. इसका एक उदाहरण डी हुए उन्होने अपने एक परिचित का जिक्र किया जो लन्डन में रहते हैं और अपने माता पिता को एक "ओल्ड एज होम" में रखने के बस्ते उन्हें दिखाने ले गये. माता-पिता को मायूस पा कर वो बोले: " देखिए ना, यहाँ पर फ़्रिज़ हैं, ये एमर्जेन्सी बटन है. ये देखिये सोने का कमरा कितना अच्छा है." उनकी बातों से ये लग रहा था जैसे वो माता-पिता से उस समय का बदला ले रहे हों जब उनको बचपन में स्कूल भेजा होगा.
"कि ये देखो ये पार्क है, ये क्लास रूम है, ..." . उन्होंने बताया कि "घर में उसे प्यार मिलता है , अच्छा खाना मिलता है , टीवी है , जब जो चाहे कर सकता है, स्कूल में क्या है , जो उसे अच्छा लगे ?"। जरुरत है स्कूल को एसा बनाने की, जिसे बच्चा पसंद करे।

उन्होंने अमरीकी स्कूलों का भी उदाहरण दिया और बताया कि वहां अच्छे अध्यापकों की कमीं है।

अध्यापन के कार्य को अत्यंत कठिन बताते हुए उन्होंने बताया कि " जैसे एक कक्ष्या में ६० विद्यार्थी हैं। आप उन साठों को कुछ समझा रहें हैं। लेकिन वहां पर कोई तेज हैं, कोई साधारण है, कोई धीमा सीखने वाला विद्यार्थी है। अत: सब अपने -अपने सीखने की गति के साथ समझ रहे है। असल में ६० दिमाग अपनी-अपनी तरह से ६० लेच्चेर सुन रहे हैं। इसके लिए जरुरी है, कि जो धीमी गति के बच्चे हैं, उन्हें अलग से सिखाया जाये. उन्हें ये सिखाना है कि "सीखें कैसे?"। इसलिए बच्चों को "सीखना सिखाना है "।
उन्होंने अपने अनुभव बनते हुए बताया कि कैसे एक- एक हफ्ते में धीमी गति वाले बच्चों के गणित में अंको का सुधार किया जा सकता है।

पचास साल बाद यहाँ चम्पावत के बच्चों को देश की उन्नति मन अपना महत्वपूर्ण योगदान देने की इच्छा रखते हुए उन्होंने अपना वक्तब्य समाप्त किया।

शनिवार, जून 19, 2010

मोहल्ला से साभार : बीमार को देखने जाएँ तो क्या करें?

यदि आप किसी बीमार मित्र को देखने अस्पताल जाएँ तो पहले इसे ज़रूर पढ़ें.

चम्पावत की खबरें, Some news about champawat visit

इस बीच गर्मियों की छुट्टियों हम मैं चम्पावत गये थे. वहाँ की खबरें बिस्तार से; The first one is through this image.
Activities under Savidya: (1). Newspaper report of 5th June 2010 on the distribution of 500 dress, medicines to students of about 7 schools at Kulethi.

(2). Anupam viewing the water from a village river on the microscope in the “Science resource center. Kulethi”.

(3). The photograph (of the Algy present in the water) taken by digital camera through the eyepiece is also shown.