रविवार, अप्रैल 19, 2009

गाँधी जी Gandhi JI

मेरी माँ एक कविता सुनाया करती थी। सोच रहा हूँ कि पोस्ट कर दूँ :
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मैया मेरे लिए मंगा दो
छोटी धोती खादी की।
जिसे पहन कर बन जाऊंगा
मैय्या मैं भी गाँधी जी।

आँखों में ऐनक पहनूंगा
कमर घड़ी लटका उंगा।
लिए हाथ में एक लकुटिया
धीरे ... धीरे ... आऊंगा।

लाखों लोग चले आएंगे
मेरे दरशन पाने को।
बीच सभा मैं बैठूँगा मैं ,
सच्ची बात सुनाने को।

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 anonymous
Gandhi ji  Poem

रविवार, अप्रैल 05, 2009

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२०.१०.93
दो बैंड से मेट्रो तक
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यह कविता मैंने करीब १५ साल पहेले लिखी थी। सोचा इसे यहाँ चेप दूँ।
इंतजार फरमाएं

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दो बैंड का एक रेडियो
दो कुर्सियों समेत एक मेज
एक खाट तथा पाँच भांडे
यह
एक पहेली है|

यों तो इस पहेली का उदगम
हजारों साल पहले का
शंकित इतिहास बताता है
फिलहाल
"ब्रांड न्यू " पहेली , जिसका
वास्ता सबसे है
कोई २३-२४ साल पुरानी है|

कोई २३-२४ साल पहले
एक दिन
एक बाप कुछ यों ही
हिसाब लगा रहा था
''२३-२४ साल बाद
एक दिन ,
मुझे,
दो बैंड का एक रेडियो
दो कुर्सियों समेत एक मेज
एक khat तथा पाच भाड़े
एक साथ -या धीरे -धीरे
इंतजाम करने हैं"
जिस दिन
घर मैं
एक फूल सी लड़की ने जन्म लिया था
वक्त का तकाजा है
समय करवटें लेता है
इतिहास लोटता है
आज
यानि २३-२४ साल बाद
हिसाब कुछ यों मोड़ लेता है:

मारुती८०० से १०००
टीवी , फ्रिज़े और वस्तुओं
से पटे पड़े बाज़ार
अक्सर ख़ास सीजन मैं गूंजते
लौद्दे स्पीकर और वीसीआर
कुछ इस तरह बदलते हैं
बाप के उस हिसाब को :
'' एक स्याम स्वेत टीवी
एक सोफा सेट
और दोनों तरफ दर्पण लगा
एक डबल बेड
हो सके तो क्रोक्केरी
समेत फ्रिज और कुछ कैश
एक साथ जरुरत है
अचानक वरना
कह देंगे वोह
जिन्होंने हमसे
हमारे फूल सी बिटिया का
रिश्ता तय किया है
"कि सिलेंडर डुप्लीकेट आने लगे हैं
कित्चेन मैं ''गैस लीक '' हो गयी थी |
प्रेम , २०.१०.1993