रविवार, अप्रैल 19, 2009

गाँधी जी Gandhi JI

मेरी माँ एक कविता सुनाया करती थी। सोच रहा हूँ कि पोस्ट कर दूँ :
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मैया मेरे लिए मंगा दो
छोटी धोती खादी की।
जिसे पहन कर बन जाऊंगा
मैय्या मैं भी गाँधी जी।

आँखों में ऐनक पहनूंगा
कमर घड़ी लटका उंगा।
लिए हाथ में एक लकुटिया
धीरे ... धीरे ... आऊंगा।

लाखों लोग चले आएंगे
मेरे दरशन पाने को।
बीच सभा मैं बैठूँगा मैं ,
सच्ची बात सुनाने को।

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 anonymous
Gandhi ji  Poem

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