रविवार, अप्रैल 05, 2009

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२०.१०.93
दो बैंड से मेट्रो तक
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यह कविता मैंने करीब १५ साल पहेले लिखी थी। सोचा इसे यहाँ चेप दूँ।
इंतजार फरमाएं

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दो बैंड का एक रेडियो
दो कुर्सियों समेत एक मेज
एक खाट तथा पाँच भांडे
यह
एक पहेली है|

यों तो इस पहेली का उदगम
हजारों साल पहले का
शंकित इतिहास बताता है
फिलहाल
"ब्रांड न्यू " पहेली , जिसका
वास्ता सबसे है
कोई २३-२४ साल पुरानी है|

कोई २३-२४ साल पहले
एक दिन
एक बाप कुछ यों ही
हिसाब लगा रहा था
''२३-२४ साल बाद
एक दिन ,
मुझे,
दो बैंड का एक रेडियो
दो कुर्सियों समेत एक मेज
एक khat तथा पाच भाड़े
एक साथ -या धीरे -धीरे
इंतजाम करने हैं"
जिस दिन
घर मैं
एक फूल सी लड़की ने जन्म लिया था
वक्त का तकाजा है
समय करवटें लेता है
इतिहास लोटता है
आज
यानि २३-२४ साल बाद
हिसाब कुछ यों मोड़ लेता है:

मारुती८०० से १०००
टीवी , फ्रिज़े और वस्तुओं
से पटे पड़े बाज़ार
अक्सर ख़ास सीजन मैं गूंजते
लौद्दे स्पीकर और वीसीआर
कुछ इस तरह बदलते हैं
बाप के उस हिसाब को :
'' एक स्याम स्वेत टीवी
एक सोफा सेट
और दोनों तरफ दर्पण लगा
एक डबल बेड
हो सके तो क्रोक्केरी
समेत फ्रिज और कुछ कैश
एक साथ जरुरत है
अचानक वरना
कह देंगे वोह
जिन्होंने हमसे
हमारे फूल सी बिटिया का
रिश्ता तय किया है
"कि सिलेंडर डुप्लीकेट आने लगे हैं
कित्चेन मैं ''गैस लीक '' हो गयी थी |
प्रेम , २०.१०.1993

1 टिप्पणी:

रितेश तिवारी ने कहा…

1993 mein kavita likhi gayi hai, par aaj bhi prasangik hai, bas do band ke radio ki jagah bada plasma tv aa gaya hai, aur kuchh kathit dahej virodhee, jo bahu ko ladki manne ka prachar karte hain wo parde ke peechhe cash aur gold late hain. Par cylinder leak hone ka khatra to abhi bhi hai. Dowry is curse for our society.