चरण पादुका : भरत और प्रवासी
लाकडाऊन (lock down) का चौथा चरण (मई १८ से ३१ , २०२०) भारत में लागू हो गया है | इस दौरान जो सबसे बड़ी बात निकल कर आयी है वह है : प्रवासी मजदूर - किसी को भी इस बात का अंदाज नहीं था कि आज के भारत में लोग कैसे अपनी जीवन चर्या का यापन करते हैं | कोरोना महामारी ने ये बात सामने ला कर खड़ी कर दी है कि भारत की अर्थव्यवस्था की इकाई असल में ये छोटे-छोटे व्यापारी- उनके साथ काम करने वाले दिहाड़ी लोग- या फिर सुबह या शाम साईकिल से दसियों किलोमीटर तक काम करने जाने वाले लोग हैं |
मुझे याद आ रहा है -जब एक या दो दिन का "बंद" या भारत बंद का आह्वान होता, तो सबसे पहले उन लोगों की याद आती जो रोज कमाते -खाते हैं | लोग खा तो अपने गाँव में भी लेते- लेकिन बच्चों की अच्छी पढ़ाई के लिए या छत पर घास के बजाय पक्का लिंटर डलवाने के वास्ते ये लोग अपने घरों से दूर बहुत दूर तक काम की तलाश में आ गए |
पहले लाकडाऊन में तो किसी को कोई अंदाज ही नहीं हो पाया कि करना क्या है | ये महामारी भी ऎसी कि इतनी तेजी से -सांस के रास्ते से या हाथ को मुंह पर लगाने से ही फ़ैल जा रही है | तो लॉकडाउन - पर - लॉकडाउन के होते होते -आज हम चौथे चरण में पहुंच गए | बस , ये ही वो बात है- जिसके लिए कोई भी तैयार नहीं था - बिलकुल नहीं | रोज कमाने वाले लोग तो कत्तई नहीं | उनके पास जो कुछ बचा था वो ख़तम हो चुका है | नौकरी के वापस मिलने के फिलहाल तो कोई आसार नजर नहीं हैं | घर से बात हो भी गई तो वहां भी दिक्क्त है | कुल मिलाकर ये लोग अब घर जाना चाहते हैं ताकि सबके साथ मिलबैठकर कुछ और मेहनत करने की सोचे |
ये नक्शा एक वेबसाइट से २० मई २०२० को ३ बजे के करीब लिया गया है
https://dp.observatory.org.in/content/migration-route-covid-19
इसमें प्रत्येक डॉट १००- से ५०० तक के प्रवासी मजदूरों के एक क्लस्टर को दिखाता है
अब सरकारों ने बसों का, रेलों का (श्रमिक एक्सप्रेस ) इंतजाम किया है -तो कोइ पैदल ही चला जा रहा है - १०० किलोमीटर, २००, ३००, ५००, १००० किलोमीटर तक| रास्तों में कई शहर पड़ते हैं - वहां की पुलिस लाकडाऊन करने के लिए इन लोगों को भी कहती है कि अंदर जाओ. लेकिन कहाँ? किसी तरह से बचते- बचाते - रेल पटरियों पर चलते -चलते ये लोग अपनी कई सौ किलोमीटर की सड़कों को नापते हैं| दो- दो- दिनों तक सिर्फ बिस्किट पर | इसी बीच बहुत सारे लोगों ने अपने पास के गावों से गुजरने वाले मजदूरों के लिए पानी, खाने का इंतजाम किया है |
इधर पता लगा है कि १ जून से हर रोज करीब २०० रेलगाड़ियां सिर्फ इन्हीं प्रवासियीं के लिए चलाई जाएंगी.
इन दिनों टेलेविजन पर चलते लोगों के हुजूम देखना- उनकी तरह तरह की कहानियों को ट्विटर पर पढ़ना एक आम बात हो गयी है | जानकार लोग बता रहें हैं कि ये विस्थापन १९४७ के विस्थापन से भी कहीं बड़े स्तर पर है|
भारत इस समय कोरोना वायरस की महामारी की वजह से स्वास्थ्य आपातकाल (health emergency) से कम, किन्तु "प्रवासी मजदूरों के आर्थिक संकट ( economic hardship)" से ज्यादा जूझ रहा है | एक-एक रेलगाडी में करीब १२०० लोग आते हैं - लेकिन रेल की खबर लगते ही कई हजार लोग स्टेशन पर पहुंच जाते हैं - ऐसे में सामाजिक दूरी (social distancing) की बात मिलकुल बेमानी हो जाती है | इस समस्या का समाधान सभी करना चाहते हैं- सरकारों ने कई लाख लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचा दिया है -लेकिन समस्या इतनी विकराल है - ऐसा लग रहा है जैसे -"ऊंट के मुँह में जीरा " | देखते हैं कैसे हम इस सबका हल निकालते हैं ?
चरण पादुका (charan paduka, footwear for migrants):
इसी बीच चलते -चलते जब लोगों के , उनके बच्चों के पैरों की चप्पलें पूरी घिस गयीं - ऐसे में , तपती धूप और ४० डिग्री के तापमान में चलते इन लोगों को देखकर मध्य प्रदेश की पुलिस ने एक नायाब तरीका निकाला | आकाशवाणी के अनुसार पुलिस ने करीब १५००० रुपये अपने आप इकठ्ठा करके ढेर सारे जूते चप्पल खरीद के उन चलने वाले लोगों को मुफ्त में बांटना शुरू किया - इसे इन्होने " चरण पादुका अभियान " का नाम दिया है |
अभी तक मैं चरण पादुका का सम्बन्ध सिर्फ रामायण के भरत और राम से ही जोड़ता था | लेकिन अब ये मेरे जीवन का एक अति संवेदनशील जीता-जागता शब्द बन गया है |
इस चरण पादुका अभियान को काफी समर्थन मिला है और तमाम NGO इस कार्य को कर रहे हैं |
मई १९ तक भारत में १ लाख से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और ३ हजार के करीब लोग इस बीमारी से मर चुके हैं अभी तक ३९००० लोग ठीक हो चुके हैं | विश्व भर में पिछले ५-६ महीने में ३ लाख से ज्यादा लोग मर चुके हैं |
इसी आशा के साथ कि जल्द से जल्द इस बीमारी पर काबू पाया जाएगा :
प्रेम मई १९, २०२०
लाकडाऊन (lock down) का चौथा चरण (मई १८ से ३१ , २०२०) भारत में लागू हो गया है | इस दौरान जो सबसे बड़ी बात निकल कर आयी है वह है : प्रवासी मजदूर - किसी को भी इस बात का अंदाज नहीं था कि आज के भारत में लोग कैसे अपनी जीवन चर्या का यापन करते हैं | कोरोना महामारी ने ये बात सामने ला कर खड़ी कर दी है कि भारत की अर्थव्यवस्था की इकाई असल में ये छोटे-छोटे व्यापारी- उनके साथ काम करने वाले दिहाड़ी लोग- या फिर सुबह या शाम साईकिल से दसियों किलोमीटर तक काम करने जाने वाले लोग हैं |
मुझे याद आ रहा है -जब एक या दो दिन का "बंद" या भारत बंद का आह्वान होता, तो सबसे पहले उन लोगों की याद आती जो रोज कमाते -खाते हैं | लोग खा तो अपने गाँव में भी लेते- लेकिन बच्चों की अच्छी पढ़ाई के लिए या छत पर घास के बजाय पक्का लिंटर डलवाने के वास्ते ये लोग अपने घरों से दूर बहुत दूर तक काम की तलाश में आ गए |
पहले लाकडाऊन में तो किसी को कोई अंदाज ही नहीं हो पाया कि करना क्या है | ये महामारी भी ऎसी कि इतनी तेजी से -सांस के रास्ते से या हाथ को मुंह पर लगाने से ही फ़ैल जा रही है | तो लॉकडाउन - पर - लॉकडाउन के होते होते -आज हम चौथे चरण में पहुंच गए | बस , ये ही वो बात है- जिसके लिए कोई भी तैयार नहीं था - बिलकुल नहीं | रोज कमाने वाले लोग तो कत्तई नहीं | उनके पास जो कुछ बचा था वो ख़तम हो चुका है | नौकरी के वापस मिलने के फिलहाल तो कोई आसार नजर नहीं हैं | घर से बात हो भी गई तो वहां भी दिक्क्त है | कुल मिलाकर ये लोग अब घर जाना चाहते हैं ताकि सबके साथ मिलबैठकर कुछ और मेहनत करने की सोचे |
ये नक्शा एक वेबसाइट से २० मई २०२० को ३ बजे के करीब लिया गया है
https://dp.observatory.org.in/content/migration-route-covid-19
इसमें प्रत्येक डॉट १००- से ५०० तक के प्रवासी मजदूरों के एक क्लस्टर को दिखाता है
अब सरकारों ने बसों का, रेलों का (श्रमिक एक्सप्रेस ) इंतजाम किया है -तो कोइ पैदल ही चला जा रहा है - १०० किलोमीटर, २००, ३००, ५००, १००० किलोमीटर तक| रास्तों में कई शहर पड़ते हैं - वहां की पुलिस लाकडाऊन करने के लिए इन लोगों को भी कहती है कि अंदर जाओ. लेकिन कहाँ? किसी तरह से बचते- बचाते - रेल पटरियों पर चलते -चलते ये लोग अपनी कई सौ किलोमीटर की सड़कों को नापते हैं| दो- दो- दिनों तक सिर्फ बिस्किट पर | इसी बीच बहुत सारे लोगों ने अपने पास के गावों से गुजरने वाले मजदूरों के लिए पानी, खाने का इंतजाम किया है |
इधर पता लगा है कि १ जून से हर रोज करीब २०० रेलगाड़ियां सिर्फ इन्हीं प्रवासियीं के लिए चलाई जाएंगी.
इन दिनों टेलेविजन पर चलते लोगों के हुजूम देखना- उनकी तरह तरह की कहानियों को ट्विटर पर पढ़ना एक आम बात हो गयी है | जानकार लोग बता रहें हैं कि ये विस्थापन १९४७ के विस्थापन से भी कहीं बड़े स्तर पर है|
भारत इस समय कोरोना वायरस की महामारी की वजह से स्वास्थ्य आपातकाल (health emergency) से कम, किन्तु "प्रवासी मजदूरों के आर्थिक संकट ( economic hardship)" से ज्यादा जूझ रहा है | एक-एक रेलगाडी में करीब १२०० लोग आते हैं - लेकिन रेल की खबर लगते ही कई हजार लोग स्टेशन पर पहुंच जाते हैं - ऐसे में सामाजिक दूरी (social distancing) की बात मिलकुल बेमानी हो जाती है | इस समस्या का समाधान सभी करना चाहते हैं- सरकारों ने कई लाख लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचा दिया है -लेकिन समस्या इतनी विकराल है - ऐसा लग रहा है जैसे -"ऊंट के मुँह में जीरा " | देखते हैं कैसे हम इस सबका हल निकालते हैं ?
चरण पादुका (charan paduka, footwear for migrants):
इसी बीच चलते -चलते जब लोगों के , उनके बच्चों के पैरों की चप्पलें पूरी घिस गयीं - ऐसे में , तपती धूप और ४० डिग्री के तापमान में चलते इन लोगों को देखकर मध्य प्रदेश की पुलिस ने एक नायाब तरीका निकाला | आकाशवाणी के अनुसार पुलिस ने करीब १५००० रुपये अपने आप इकठ्ठा करके ढेर सारे जूते चप्पल खरीद के उन चलने वाले लोगों को मुफ्त में बांटना शुरू किया - इसे इन्होने " चरण पादुका अभियान " का नाम दिया है |
अभी तक मैं चरण पादुका का सम्बन्ध सिर्फ रामायण के भरत और राम से ही जोड़ता था | लेकिन अब ये मेरे जीवन का एक अति संवेदनशील जीता-जागता शब्द बन गया है |
इस चरण पादुका अभियान को काफी समर्थन मिला है और तमाम NGO इस कार्य को कर रहे हैं |
मई १९ तक भारत में १ लाख से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और ३ हजार के करीब लोग इस बीमारी से मर चुके हैं अभी तक ३९००० लोग ठीक हो चुके हैं | विश्व भर में पिछले ५-६ महीने में ३ लाख से ज्यादा लोग मर चुके हैं |
इसी आशा के साथ कि जल्द से जल्द इस बीमारी पर काबू पाया जाएगा :
प्रेम मई १९, २०२०