रविवार, फ़रवरी 14, 2016

गुरुत्वाकर्षण तरंग खोजी यन्त्र The instrument for observing Gravitational waves

गुरुत्वाकर्षण तरंग खोजी यन्त्र
( ग्रेविटेशनल वेव्स खोजी यन्त्र ) लीगो (LIGO, VIRGO  LIGO -INDIA).

Ripples in  space-time स्थान -समय (ब्रह्माण्ड में ) की एक प्रकार से लहराती चुन्नट-तरगें

कई दशकों की लम्बी प्रतीक्ष्या के बाद अन्तत: भौतिकविदों  ने  ripples in  space-time
यानि ये कहा जाय कि स्थान -समय (ब्रह्माण्ड में ) की एक प्रकार से लहराती चुन्नटों का पता लगा ही लिया.  इन चुन्नटों या तरंगों को गुरुत्वाकर्षण तरंग कहा जाता है।

 काले तारा -युग्म के एकाकार हो जाने की घटना या ब्रह्माण्ड के बड़े विस्फोट 

ये तरंगें बड़े-बड़े तारों  (massive stars) के भयंकर घटनाक्रमों जैसे विस्फोटों या काले तारा -युग्म  (binary black holes) के एकाकार हो जाने पर निकलती हैं.  ये न्यूट्रॉन तारों (Neutron stars) के एक हो  जाने पर भी निकलती हैं.   काले तारों के एक होने पर सिर्फ  गुरुत्वाकर्षण तरंगें  निकलती हैं , जबकि न्यूट्रॉन तारों के एक होने पर इनके साथ गामा किरणें भी निकलती हैं.  इनका प्रयोगात्मक सत्यापन खगोल भौतिकी   मैं एक नये युग की घोषणा करता है- कि गुरुत्वाकर्षण तरंगों से हम अन्तरिक्ष को सुन सकते हैं.

फोटोन 
याद रहे आज तक,  सिर्फ प्रकाश से ही हम अंतरिक्ष के बारे में जान सकते   थे! प्रकाश यानि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग जिसका कण फोटोन होता है , चाहे वह गामा किरण हो , पराबैगनी या फिर रेडियो आवृत्ति का फोटोन हो.

ग्रेविटॉन
गुरुत्वाकर्षण तरंगों  सम्बन्ध ग्रेविटॉन से बनाया जाना है जो कि स्पिन २ का कण है. गुरुत्वा कर्षण  किसी
 चीज का मोहताज नहीं , यह हर उस दीवार के पार जा  सकता है -जहाँ से प्रकाश नहीं जा सकता.  इसका मतलब ये भी हुआ की 'बिग बैंग" यानि आदि ब्रह्माण्ड के वो क्षण जहाँ से प्रकाश  नहीं आ सकता था, के बारे में अब पढ़ा जा सकता है.

रबड़ की चादर के ऊपर एक भारी गेंद
 करीब सौ साल पहले  आइंस्टीन ने गुरुत्वाकर्षण के बारे में ये सिद्धांत दिया था कि गुरुत्व  एक  ऐसी सपाट सतह है जो कि स्थान एवं समय  (स्पेस-टाइम) से बनी है. ज्यों ही कोई भारी द्रयव्यमान  (१०-२० सूरजों  के द्रयव्यमान के बराबर)  इसके संपर्क में  आता है, या भ्रमण करता है, तो ये सतह उसके हिसाब से बाहर की तरफ मुड़  जाती है. ठीक वैसे ही जैसे एक रबड़ की चादर के ऊपर एक भारी गेंद डालने पर चादर । और जब भारी तारे जबरदस्त चाल से घूमते हुए एक दूसरे से टकराते हैं- और एकाकार हो जाते हैं (एक सिमटी गुठली बन जाते हैं ) , तो उन दोनों के द्रयव्यमान का कुछ भाग  इन तरंगों और किरणों में  तब्दील हो जाता है.



१००० से ज्यादा लेखक और १०० से ज्यादा संस्थान , भारतीय भी


  यह खोज ११ फ़रवरी २०१६ के फिजिकल रिव्यु लेटर्स (http://journals.aps.org/prl/pdf/10.1103/PhysRevLett.116.061102)  में जब प्रकाशित हुई , तो दुनियां भर में सुखद खलबली मच गई।  वह इसलिए क्यों कि इस दिशा में कई वर्षों से महंगे प्रयास  थे , ठीक वैसे ही, जैसे हिग्ग के बोसॉन के लिए किये गए थे. यहाँ पर ये बताना जरुरी है कि आधुनिक शोध की दिशा को काफी सोच विचार के बाद तय किया जाता है - हालाँकि यूरेका क्षण की प्रतीक्ष्या सभी को होती है. इस शोध पत्र में १००४ वैज्ञानिकों ने योगदान किया है, जिसमें भारत के कई संस्थानों के वैज्ञानिक हैं. यह एक और  सुखद बात है।    इस शोध पात्र की प्रस्तावना से कुछ वाक्य ये हैं: "Albert Einstein predicted existence of gravitational waves. He found that the linearized weak-field equations had wave solutions: transverse waves of spatial strain that travel at the speed of light, generated by time variations of the mass quadrupole moment of the source" .

इसी तरह से अगस्त २०१७ में दो  न्यूट्रॉन तारों  (२-३ सूरजों के द्रयव्यमान) के एक होने की घटना भी वैज्ञानिकों ने LIGO से रिकॉर्ड की है.
https://doi.org/10.1103/PhysRevLett.119.161101
http://science.sciencemag.org/content/early/2017/10/16/science.aaq0049.full


ऊपर दिखाया गया चित्र  इस (https://doi.org/10.1103/PhysRevLett.119.161101) शोध पत्र से लिया गया है. आप देकह सकते हैं कि करीब -करीब ५० हर्ज़ से निकलता एक पीला वक्र  कर्रीब दो सौ हर्ज़ के आसपास जा कर  दिखता है. ये उसी गुरुत्वाकर्सण किरण का रिकार्ड है.  लेकिन एक पीली रोड (हाईवे) जैसा काफी तीव्रता वाला प्रकाश जो की ऊपरी अक्ष में  करीब -१ सेकंड  के पास दिखती है- एक प्रकार की noise है.   जो कि नीचे दिए फोटो से साफ़ कर  दी गयी है.  क्योंकि ये पीली रोड अक्सर-बिना बताये आ जाती थी (और भाइयों को- क्यों आती है- ये पक्का पता नहीं है) , इसलिए हटाई गई है! . 


 

इस घटना का  एक और सत्यापन- करीब -करीब २ सेकंड बाद फर्मी गामा-किरण-खोजी टेलिस्कोप (एक उपग्रह) द्वारा रेकॉर्ड की गयी आवाज - बीप -ने भी किया है. फर्मी टेलिस्कोप, नासा द्वारा स्पेस में  स्थापित एक उपग्रह है जो की गामा किरणों को देखता  किरणों की तीव्र ता मानवता के लिए खतरनाक स्तर पर- मेगा इलेक्ट्रान वोल्ट होती है.  ये किरणे वातावरण की वजह से पृथ्वी तक नहीं पहुँचती।



अब उस यन्त्र के बारे में : द्वी छिद्री बाधा

प्रकाशिकी का एक सबसे सुन्दर प्रयोग करीब २१५  साल पहले (सन १८०१) थॉमस यंग ने किया , जिससे ये सिद्ध हुआ कि  प्रकाश एक तरंग है. इसे प्लान्क के प्रकाश पैकिटों के सिद्धांत का सामना करना पड़ा लेकिन आज हम  जानते हैं कि  प्रकाश दोनों तरह से व्यवहार  करता  है। इसे कण -तरंग द्वन्द की तरह से जाना जाता है. थॉमस यंग के इस प्रयोग को " Young's double slit interference" द्वी छिद्री बाधा के रूप  में  जाना जाता है.
पिछली सदियों में  हालाँकि कई ऐसे बाधा  यंत्रों को खोजा गया है (जैसे फब्री-पेरो , फ़िज़्यु, माइकेल्सन , मैक -जेंडर---- आदि आदि.  इनमें से माइकेल्सन बाधा यंत्र काफी उपयोगी साबित हुआ है।

  माइकेल्सन बाधा यंत्र

सामान्यतया इस प्रयोग को  सोडियम प्रकाश से किया जाता रहा है.  इसमें एक प्रकाश स्रोत को पतले कांच से दो बराबर भागों में  बांटा जाता है. दोनों भाग एक दूसरे से ९० डिग्री पर दो दिशाओं में जाकर  वहां रखे दो  दर्पणों से टकराकर वापस मिलते हैं. आधुनिक यंत्रों में तीव्र शक्ति वाली लेज़र का उपयोग किया जाता है क्यों कि लेज़र की तरंगदैर्ध्य एक रंग की होती है।
यदि दोनों दिशाओं की प्रकाश - शाखाओं द्वारा तय की दूरी बराबर न हो, तो मिले हुए धब्बों से इस बात का पता लगता है कि  किसी ने एक शाखा या फिर दोनों शाखाओं से छेड़छाड़ की है।  गुरुत्वाकर्षण तरंग एक तरह से वृत्ताकार न हो के , दीर्घवृत्ताकार रूप से यन्त्र पर पहुँचती हैं, जिससे दो लम्बी शाखाओं पर  दो तरह के फर्क (एक शाखा लम्बी, एक छोटी) आते हैं.
अमरीका में दो जगह पर रक्खे करीब ४ किमी लम्बी शाखाओं वाले दो यंत्रों ने दो अलग -अलग समय पर ये पाया कि किसी ने छेड़छाड़ की है.  दोनों में दर्ज छेड़छाड़ का समय बिलकुल वही था  जितना प्रकाश को उन दो यंत्रों के बीच में जाने में लगता।   अलबत्ता, आइंस्टीन ने बताया था कि ये स्थान -समय की  लहराती चुन्नटें प्रकाश के गति  से चलती हैं.

भारत में भी इस तरह की एक प्रयोगशाला  की स्थापना की  संभावना है.  वो इसलिए भी ताकि उसी तरंग को दुनियां के कई जगहों पर देखा जाय, अभी जगह का चुनाव होना बाकी है.  इस  Laser Interferometer Gravitational-wave Observatory (LIGO)-इंडिया  के स्थापन  से कई सारे रोजगार के अवसर मिलेंगें - न सिर्फ विज्ञान के क्षेत्र में, बल्कि हर तरह के औद्योगिक विकास में -  LIGO -INDIA में काम आने वाली तकनीकें बहुत सी औद्योगिक इकाइयों को जन्म देंगी - यदि हम उसी screw driver technology or black box research पर खड़े होकर इसे न करें -तब. 

प्रेम के साथ,
प्रेम बिष्ट , FEB 14, 2016
अपडेटेड , नवंबर २, २०१७.

1 टिप्पणी:

Surya Thakur ने कहा…

10 से 400 Hz वाली गुरूत्व तरंगों को सुना भी जा सकता है। प्रकाशिकी एवं इलेक्ट्रानिकी के साथ कम्प्यूटर के उपयोग ने यह सम्भव कर् दिखाया है कि ब्रह्मांड में होने वाली आहट को लेजर इंटरफेरोमीटर उसी प्रकार सुन सकते हैं जैसे हमारे कान किसी अदृश्य घटना से निकलने आहट को अपने चारों ओर उपस्थित हवा में सुन लेते है। प्रकृति ने मनुष्य एवं सभी जानवरों को कान से सुसज्जित किया है जिससे वे आंख से न दिखने वाले खतरों को सुनकर अपनी रक्षा कर् सकें। भौतिकी ने सबसे अधिक उपयोग वाले यंत्र ध्वनि एवं प्रकाश के क्षेत्र में किया है। बिजली न तो दिखाई देती है और न तो सुनी जा सकती है और इसके बहुत उपयोग है लेकिन विद्युत संचार के दौरान होने वाले खतरों से बचने के लिये हमें प्रकृति ने कोई अंग नही दिया है लेकिन समय के साथ हमने यह सीख़ लिया है कि बिजली से बिना जान जोखिम में डाले हम कैसे उसका उपयोग कर् सकते हैं।
गुरुत्वाकर्षण के बीच हम ब्रह्मांड के बीच वैसे ही स्थित हैं जैसे पृथ्वी पर हवा के बीच रहते हैं। हम ध्वनि के माध्यम से एक दूसरे से सम्पर्क स्थापित करते है, संगीत का आनंद लेते है तथा जानलेवा खतरों से अपने जीवन की रक्षा कर् लेते हैं। यह सब इतना सहज है कि साधारण मनुष्य कभी इसके बारे में ध्यान भी नही देता कि यह भी रिसर्च का विषय है। मगर् हम देखते हैं कि रिसर्च के द्वारा पहले टेलिफोन और अब मोबाईल हमारे जीवन के अंग बन गए हैं। हम आज मोबाइल पर इतने निर्भर हो गये हैं कि अगर भूल से पाकेट में न रखें तो घर से बाहर निकल कर् बिलकुल लाचार हो जाते हैं। लगता है कि हनारा कोई अंग ही नही काम करेगा
कम्प्यूटर के माध्यम से हमने बिजली, प्रकाश और ध्वनि को जोड़कर सूचना संचार का एज अदभुत यन्त्र iPhone विकसित कर् लिया। गुरुत्वाकर्षण के क्षेत्र में LIGO द्वारा जो क्रांतिकारी खोज हुई है उसकी तुलना बेंजामिन फ्रैंकलिन की आकाशीय बिजली को पतंग के सहारे जमीन पर उतारने से की जा सकती है। प्रोफेसर राय वाइस 1973 से गुरूत्व तरंगों को इंटरफेरोमीटर द्वारा खोजने में जी जान से लगे रहे और 80 वर्ष की उम्र के बाद हजारों सहयोगियों के अद्भुत समन्वय से अपने लक्ष्य में सफल हुये। उनके साथ 1973 से ही प्रोफेसर किप थार्न ब्रह्माण्ड के सुदूर इलाकों से निकलने वाली गुरूत्व तरंगों का आकार और उनके गुणों को अपनी गणित की प्रतिभा से साकार रूप देने में अपने अनेक सहयोगियों को लगा दिया। वे भी अब 80 वर्ष के होने वाले हैं। इन महान व्यक्तियों की तुलना भारत के प्राचीन ऋषियों से करनी उचित होगी जो मानव विकास और कल्याण के लिये अपना जीवन समर्पित कर् देते थे।
गुरूत्व तरंगो की खोज ने देखने और सुनने की क्षमता का अद्भुत मिलन करा दिया है। 1880 में ग्राहम बेल ने ध्वनि का संचार प्रकाश की किरणों के माध्यम से करने के लिये फोटोफोन बनाया फिर स्पेक्ट्रोफोन बनाया जिससे पदार्थ और प्रकाश के संवाद को सुनने के लिये फोटोएकॉस्टिक स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग आज विज्ञान और स्वास्थ्य के अनेक क्षेत्रों में हो रहा है। 1887 में माइकलसन ने इंटरफेरोमीटर का विकास करके ईथर से उतपन्न समस्याओं को विराम दे दिया और आइंस्टाइन की रिलेटिविटी का मार्ग प्रस्स्थ किया। LIGO की सफलता की तुलना गैलिलियो द्वारा टेलिस्कोप से सौरमण्डल के ग्रहों और उपग्रहों की खोज से किया जा रहा है। LIGO गुरूत्व तरंगों से ब्रह्माण्ड की ध्वनि सुनकर विज्ञान की वैसी ही प्रगति कर् सकता है जैसे टेलिस्कोप ने प्रकाश तरंगों को देखकर किया है।
अंत मे मैं प्रेम बिष्ट का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ जिनके ब्लॉग से मुझे इस बारे में जानकारी की प्रेरणा मिली। मैं इस अवसर पर हम दोनों के गुरु प्रोफेसर देवीदत्त पन्त जी को नमन करता हूँ जिन्होंने अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में स्पेक्ट्रोस्कोपी में रिसर्च करते हुए हम लोगों को जीवन के महत्वपूर्ण मूल्य बताये।