रविवार, अक्टूबर 26, 2014

दीपावली का त्यौहार-भारतीय उपमहाद्वीप की तस्वीर

दीपावली का त्यौहार गजब है.  अच्छाई -बुराई आदि- ये सब तो है.   थोड़ा समसामयिक बातचीत करें.

उत्तर भारत की दीवाली

उत्तराखंड में तीन चार दिन से तेल के दिये, रात के बारह बजे महालक्ष्मी पूजन , थोड़े बहुत पटाखे- ढेर सारे खील-बताशे -थोड़ी मिठाई , अगले दिन भइया दूज -दूब से बालों पर तेल -बग्वाली का मेला , केले , जादू के खेल , दस पैंसे वाली मटर -अगले दिन बैल की खिचड़ी, गाय की फूलों की माला (गोवर्धन पूजा) ,  पास के ही गांव में दीवाली "खेलते' बड़े लोग, या आस पास खेलते छोटे बच्चे-  जितौनी की मांग करती महिलाएं- और याद नहीं क्या क्या . दो दो रूपये की जितोनी देते लोग (एक चाल दो रूपये की होती होगी शायद).

दक्षिण भारत की दीवाली

फोटो 1
करीब तीस - पैतीस साल के बाद - समय का चक्र तो घूमा न घूमा - निवास पूरे एक सौ अस्सी डिग्री घूम के वहां से कोई तीन हज़ार किलोमीटर दूर -बिलकुल लंका की जड़ में बदल गया।
 चेन्नई- दक्षिण भारत का खूबसूरत महानगर - इक्कीसवीं सदी में  भी बहुत से सांस्कृतिक विरासतों के साथ साथ खान पान - ललित कलाओं, पढ़ने-लिखने की संस्कृति को आगे ले जाने में  माहिर (खाना चाहे कितना ही साधारण हो- लेकिन बच्चों को स्कूल भेजना परमावश्यक ).   दीवाली में- ले मार के पटाखे. दीवाली सिर्फ एक दिन. लेकिन पटाखे उस सुबह चार बजे से अपने जोरों पर. मिठाइयां - जोगिया वस्त्रों से सुसज्जित सांस्कृतिक दुकान -ग्राण्ड  स्वीट्स के लोग कूपनों को लेते, कॅश कार्ड  के भुगतान, मुरकू , केसरी पेड़ा , बदूशा (बालुशाई), चन्द्रकला , सूर्यकला , कलाकंद, आदर्शम, मैसूर पाक, काजू कतली ,साथ ही पुल्ली कचाल और तक्काली डैश डैश -  यहाँ का माहोल देखते ही बनता हैं. यदि भीड़ ज्यादा है तो बीच बीच में अंदर से पतपुड़े में कोई आज का सर्विस पकवान - जो इतना टेस्टी कि सभी लोग लेने को तत्पर. आदि आदि.

बचपन बचाओ

इस सबके बीच आई आई टी मद्रास के अंदरुनी नेटवर्क पर जोरदार बहसें कि 'क्यों ना  दीवाली में पटाखे छुड़ाने बंद किये जाएँ "  कारण साफ़ है - वातावयण एवं  खासकर अंदर के पशु पक्षी।   एक बात की  तारीफ़ करनी होगी-  पिछले पंद्रह सालों में  पटाखों की संख्या मैं करीब ६०% की कमीं आयी होगी- जबकि जनसँख्या बढ़ी है.   एक बात और जानने लायक  है कि आप अपने ख़रीदे हुए पटाखे के बाहर के रैपर में बनने की जगह देखें तो आप चकित रह जाएंगे.  ये सब शिवकाशी (जो कि इसी प्रदेश में  है ) में  ही बनते हैं.  इस उद्द्योग में काफी बच्चे भी लगे रहते हैं- ऐसा माना  जा रहा है -  बच्चों को स्कूल भेजना आवश्यक है. इस सन्दर्भ में मलाला और सत्तयर्थी का नोबेल पुरस्कार काफी महत्वपूर्ण है.

भारतीय उपमहाद्वीप की सच्ची तस्वीर गलत सन्दर्भ से

फोटो 2 
मैं उस तस्वीर की बात नहीं कर रहा- मैं तो नासा की इस तस्वीर (फोटो 1 )  की बात कर रहा हूँ जो सच्ची है.  लेकिन जिस सन्दर्भ (दीपावली) में इस तस्वीर का हवाला दिया जा रहा है वो गलत है.  इस तस्वीर में जो सफ़ेद हिस्से हैं, वहां पर विद्दुतीकरण (बिजली) सन 1991 तक हुआ था.  जो नीले हिस्से हैं उनमें 1992 के बाद, हरे हिस्सों में 1998 में और लाल हिस्सों में 2003 में विद्दुतीकरण हुआ.  ये फोटो असल में कई फोटो को मिला कर बनाया गया है और इसे यहाँ  से डाउनलोड किया गया था. इसका उल्लेख ibnlive.in.com पर एवं रोबर्ट जॉनसन ने अपने 26  अक्टूबर 2011 के  इस लेख में  किया है.  हमारे कई देशभक्त बंधू इसे दीवाली पर ली गयी फोटो सोच रहे हैं- जो कि  ठीक नहीं है.  दीवाली की तस्वीर (फोटो 2) इस लिंक पर हिन्दू अख़बार में  है।

दीपावली की ढेर सारी बधाइयों के साथ.

March 1, 2015

The Economic Data Hidden in Nighttime Views of City Lights: This is the link for World economic map.

http://goo.gl/Zbrt36


प्रेम 


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