रविवार, अप्रैल 07, 2013

गेलकी भी गिर जाए तो गिरने दो!


[This  particular story had a great impact on the outlook towards the society. This was one of the first posts in this blog in 2009]. 8 April 2013

हमारे नाना जी टनकपुर में उचौली गोठ में रहते थे। बात उन्ही दिनों कि है जब जिम कार्बेट (Jim Corbette) कुमाऊ नरभक्षियों  (Man Eaters of Kumaun) का शिकार कर रहे थे। आम लोगो को भी कभी कभार जंगली शिकार हाथ लग जाता.  ए़क बार ऐसे ही कहीं शिकार-भात खा रहे थे कि ए़क बाबाजी (fakir) आ गए।

 'नमो नारायण बाबा जी' कहने के बाद नाना जी ने उन्हें भात खाने के लिए आमन्त्रित किया। बाबा जी कुछ सब्जी के साथ भात खाने लगे, किंतु बाकि लोगों को शिकार देखकर उनका मन ललचा गया।
मनः स्थिति भांप कर नाना जी ने बाबा जी से पूछा : "आप भी लेंगे क्या?"
बाबाजी बोले: "अच्छा थोड़ा रस-रस छोड़ दो " [Please give some curry]
नानाजी ने करछी से सावधानी पूर्वक रस देने की कोशिश करी।
बाबाजी ने कहा : " बेटा गेलकी भी गिर जाए तो गिरने दो" [If the piece  also falls, let it drop].
नानाजी ने कुछ बाबाजी की थाली में टुकड़े भी डाल दिए। बाबाजी ने खूब चाव से खाया और विदा ली।
-प्रेम, जुलाई ४, 2009

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