चोर माल ले गए
लोटे थाल ले गए
मूंग और मसूर की
सारी दाल ले गए|
और हम खड़े खड़े
खाट पर पड़े पड़े,
सामने खुले हुए
किवाड़ देखते रहे,
....कारवां गुज़र गया,
गुबार देखते रहे!
[Nov. 26, 2012: I just checked the comment and found out that these lines are by Kaka Hathrasi !]
Prem
लोटे थाल ले गए
मूंग और मसूर की
सारी दाल ले गए|
और हम खड़े खड़े
खाट पर पड़े पड़े,
सामने खुले हुए
किवाड़ देखते रहे,
....कारवां गुज़र गया,
गुबार देखते रहे!
[Nov. 26, 2012: I just checked the comment and found out that these lines are by Kaka Hathrasi !]
Prem
4 टिप्पणियां:
वाह वाह वाह ...बहुत खूब ...
जो सोचो तो अगर
क्या खूब कह गये
वरना नासमझो को
दाल भात दे गये |
ये अच्छी बात नहीं है. काका हाथरसी रचित पैरोडी की
पंक्तियाँ हैं ये. कम से कम उनका नाम तो दिया होता.
Dhanyawad, ye batane ke liye Dr. Jyoti !
With due respect to Kaka Hathrasi... Acknowledgement.
Just that it should have been mentioned in the beginning, that these were heard from VIneet Joshi in Brook Hill Hostel (3A-1) during 1981-82 several times and remembered "as is".
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