शनिवार, मार्च 27, 2010

कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे !

चोर माल ले गए
लोटे थाल ले गए
मूंग और मसूर की
सारी दाल ले गए|
और हम खड़े खड़े
खाट पर पड़े पड़े,
सामने खुले हुए
किवाड़ देखते रहे,
....कारवां गुज़र गया,
गुबार देखते रहे!

[Nov. 26, 2012:  I just checked the comment and found out that these lines are by Kaka Hathrasi !]

Prem

4 टिप्‍पणियां:

Nipun Pandey ने कहा…

वाह वाह वाह ...बहुत खूब ...

जो सोचो तो अगर
क्या खूब कह गये
वरना नासमझो को
दाल भात दे गये |

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

ये अच्छी बात नहीं है. काका हाथरसी रचित पैरोडी की
पंक्तियाँ हैं ये. कम से कम उनका नाम तो दिया होता.

Prem ने कहा…

Dhanyawad, ye batane ke liye Dr. Jyoti !
With due respect to Kaka Hathrasi... Acknowledgement.

Prem ने कहा…

Just that it should have been mentioned in the beginning, that these were heard from VIneet Joshi in Brook Hill Hostel (3A-1) during 1981-82 several times and remembered "as is".