राखी और राजा बली
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राखी इस साल (२०२५) , ९ अगस्त . को मनायी गई.
राखी के अवसर पर पंडित जी द्वारा कहा जाने वाला संस्कृत का मन्त्र:
"येन बद्धो बली-राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे माचल माचल ॥"
पौराणिक कहानियों के अनुसार, ये "पाताल लोक" के वही राजा बलि हैं ( जिन्हें दान वीर के रूप में जाना जाता है) , जिन्हें हमारे पूर्वज (उदहारण: मेरे पिताजी) हर बार खाने से पहले ५ गास अपनी थाली से निकाल कर थाली के बगल में रखते थे (बल पैठाना) .
देवी लक्ष्मी ने बली राजा को एक राखी बाँध कर उन्हें ये हिम्मत दिलायी कि वह सुरक्षित रहेंगे , इसके बदले में राजा ने विष्णु ( जो बाली के साथ द्वारपाल का काम कर रहे थे) को लक्ष्मी के साथ जाने की इजाजत दे दी।
आज के जमाने में राखी बाँधने में भाई-बहन या पंडित-यजमान एक दूसरे की सुरक्ष्या (आर्थिक, सामाजिक ) की तरह देखते हैं.
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