बहुत अर्सा हो गया था, या यूँ कहें की ४ दशक बीत गए सीधे नल से पानी पिए हुए. या तो सीधे नल पर अंजली से या फिर स्टील या कांच के गिलास से. जैसे नैनीताल की झील का साफ़ किया हुआ -साफ़ सा दीखने वाला पानी हम सीधे नल से गिलास से पी लेते- बड़ी शांति मिलती- खासकर दोपहर को. वैसे ही नौले से भरा पानी भी हम सीधे बाल्टी से डबोलकर पी जाते. बाद बाद को वो बोले तुम्हे अमीबॉयसिस हो गया है, अब तुम फ्लाजिल-२०० लो, उससे नहीं हुआ तो मेट्रोजिल-५००, आदि आदि। ये सब टेम्पोरेरी समाधान होते, फिर से ढाक के तीन पात. सौंठ खाया घी -चावल में , क्या क्या न किया. अलोपथी से विश्वास जाता न जाता , हमने उबले पानी के किस्से सुने थे- आजमाया और बात जम गयी. उबला पानी हमारा और हम उनके हो गए. माँ भी उसे "पक्का पानी" कहती थी।
लेकिन इस बार डरते डराते लोगों ने जब ये कहा की 'वो दाएं हाथ की तरफ के नल से आने वाले पानी को सीधे पी सकने हैं, वरना नगरपालिका पर मुकददमा हो जाता है - कुछ दें के बाद , हमारी दूसरी परिचित बोलीं कि यहाँ तो हम ६ महीने के बच्चे को भी नल का ही पानी देते हैं - हम ने पानी पी लिया- पानी पिया मतलब छक के पिया - खूब पिया - पूरे २०-२५ दिन तक - वह क्या अहसास था - सीधे नल का पाने पीने का. लेकिन साहब इस के लिए हमें वहां जाना पड़ा.
प्रेम ( जुलाई २५, २०२३ ; देशाटन मई २०- जून २० २०२३ के बारे में )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें