ये श्लोक उस समझदारी को समर्पित है जो जिन्दा माता पिता को तो ठीक-ठाक (!) रखते ही हैं, लेकिन उनके महा प्रयाण के बाद तर्पण-हरपन श्राद्ध वगैरह पूरे मनोयोग से करते हैं.
"जीविते भोजनं नैव, मृते च भोजनं शतम् । जीवितैव हि तृप्तिश्चेत्, ब्रह्मानन्दफलं लभेत्|| "
जीवित परिवार के सदस्य को हो सकता है किसी कारणवश भोजन भी टाइम पर ना मिल पाया हो, लेकिन मृत्यु पश्चात तम्माम (सैकङों) भोज का आयोजन किया जाता है ;
जीवित मात -पिता , सास -ससुर की यदि सेवा ढंग से की जाय , तो मनुष्य (नर या नारी ) को अनेकों पुण्य प्राप्त होंगे. ||
प्रेम ट्विटर से , २५ सितम्बर २०१९
माता पिता श्राद्ध ,
Mother - father , Sharadh , tarpan