बुधवार, अप्रैल 17, 2019

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ...

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन  तैसी

जब भी लाइट जाये तो मुझे बड़ी शान्ति होती.  कि थोड़ा समय मिला इस जिल्ल्त भरी जिंदगी से,

आज के 'बनावटी प्रगत ' समाज में  भला लाइट न जाए,  या यों  कहें कि
-रास्ते  में  सरकारी गाडी ख़राब न हो, कहीं पर भी कोई रोक दे.
-ट्रैन करीब २ से १० घंटे देर से न चले [ addition: in July 2023, our train from Chennai to Thrisoor was late by 7 hours- however, SMS/ train position could be reasonably traced to start on time from home to station]
-ओला या उबर वक्त पर ना आएं
- या ऐसे ही ढेर सारे वो अनुभव जो मॉडर्न जीवन शैली के अभिन्न अंग हैं, और बिलकुल वैसे हे नहीं चलते- जैसे बताया  गया है-


लेकिन साहब - एक हम हैं - जो हमेशा इन्ही चीजों के लिए तैयार रहते हैं और बिलकुल भी ऐसा न लगेगा की ये ठीक नहीं. अब देखें:

एक कांफ्रेंस है-  इतने बड़े सभागार में  है कि आपको नाम सुनाकर क्या करेंगे.  बस ये समझ लीजिये कि  संसार में  ऐसे सभागार कुछ गिने -चुने होंगे.  कई मंजिला..  तम्माम इंतजाम.   जगह?  विलायत के पार्लियामेंट स्क्वायर के पास-  वेसमिन्स्टर स्टेशन के पास.

सुबह -देखा कि बिलकुल सड़कें पूरी ठसाठस -  लंदन के सभ्य लोग - या यहां आये हुए टूरिस्ट -  (जो कि ठीक -ठाक देशों से आये हैं) - ट्रैफिक सिग्नलों का पालन करते हुए सड़कें क्रॉस करते.    हमें कुछ २०० मीटर जाना था.  एक तो पुराने हिदुस्तानी -  "मैप रीडिंग"  में एकदम शून्य।   चर्चिल साहब का स्टैचू दिखने के बाद भी हम उल्टा गए-  कई चक्करों के बाद किसी तरह से ट्रैफिक से नेगोशिएट करते हुए अंततः  सभागार पहुंचे- समझ लीजिये कि हमें महाकुम्भ (अब १२ साल वाला ) नहा लिया.

हमें कुछ अच्छा नहीं लग रहा था कि  बड़ी गाड़ियां , रिक्शे जा रहे थे --रिकी-शा  एक जापानी शब्द है- इसका मतलब होता है-  रिकी (ताकत )  शा (वाहन) -  यानि  ताकत वाला वाहन -- जैसे डैन-श्या (बिजली वाला वाहन- इलेक्ट्रिक ट्रैन )  खैर। .

शाम होते न होते पूरा का पूरा पार्लियामैंट स्ट्रीट बंद - गाड़ियां बंद.  पता चला कि "क्लाइमेट सेविंग" के पक्ष में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं - और करीब दो तीन दिन तक चल सकते हैं.  हालांकि बिग बैन का रिपेयर कार्य चल रहा है  (इन्सिडेंटली - फ्रांस का नोस्टार्डम चर्च में  रेपेअर के दौरान आग लग गयी है ).  कई साड़ी मीटिंग्स हो रही थी सड़कों पर बैठे बैठे-  (कुछ याद आया?)
एक वक्ता  इस बात पर जोर दे रहे थे कि  'कुछ" लोग टैक्स नहीं दे रहे हैं!  ये सब हम आते-जाते वक्त देख लेते थे.

उधर कांफ्रेंस का अपना जलवा था.  लोग -कम्पनियां  बड़े जोर शोर से सीखने सीखने मैं लगे थे.




कांफ्रेंस के करीब ८-१० कमरों में से -एक में -थोड़ी देर के लिए -थोड़ा सी समस्या आ गयी.  आधे लेक्चर के दौरान प्रोजेक्टर का कनेक्शन नहीं आ पा  रहा था.. स्पीकर बिलकुल चुप.. टेक्निशियान लगे रहे लेकिन न.  मेरे समझ में  तो स्पीकर को कहना चाहिए  कि " ठीक है जब तक ये ठीक हो रहा है- में  आपको बताता हूँ कि इसमें क्या है- "  लेकिन   ऐसा नहीं हुआ -  सभागार का कनेक्शन ख़राब हो गया.






सो -इसीलिए इस पोस्ट का शीर्षक मैंने "जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन  तैसी ..."  रखा है.
सब चीजें वैसे ही हो गयी - जैसे हो सकती- चाहे वो लंदन का पार्लियामेंट स्क्वायर ही क्यों न हो.


प्रेम , अप्रेल १७, २०१९





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