आजकल अक्सर इस श्लोक की अंतिम पंक्ति याद आ जाती है. इसलिए नहीं कि भगवान श्रीकृष्ण ये कहते हैं.अर्जुन से कि करने वाला मैं हूँ.तू खड़ा हो जा बस . बल्कि इसलिए, कि सारा कार्य तो मिल-बैठ के सबकी मदद से होना है -- कर्ता तो निमित्त मात्र के लिए है।
श्रीमद्भागवत गीता : अद्ध्याय ११ , श्लोक ३३:
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व
जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।।11.33।।
अक्सर "भयावह" स्थितियों में शायद संस्कृत के श्लोक याद आते हैं.
अप्रेल ६, २०१७
2 टिप्पणियां:
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