रविवार, अप्रैल 13, 2014

Ranj ki jag guftgu hone lagi रंज की जब गुफ्तगू होने लगी-

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी------

गुलाम अली साहब की ये ग़जल अचानक तब याद आई जब एक कपडा धोने लगा सर्फ़ (डिटर्जेंट) से---  शायद ब्रूकहिल का माहोल याद आ गया --
साथ ही पता चला कि ये राग "भूप कल्याण" (भूपाली) है

लीजिये जरा लम्बा है - करीब २५ मिनट क। 

http://www.youtube.com/watch?v=r4kljPiHpIw


आखिरी शेर जरा जोरदार है.

" दाग इतराये हुए फिरते हैं आज 
शायद उनकी आबरु होने लगी"

ये गजल नवाब मिर्जा खान ( दाग देहलवी ) Nawab Mirza Khan की लिखी है --  (1831--1905) نواب مرزا خان, commonly known as Daagh Dehlvi داغ دہلوی

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