चाह नहीं मैं सुरबाला के बालों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमीमाला में बिंध, प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरि डाला जाऊं
चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ, भाग्य पर इठलाऊँ. .
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पर पथ पर देना तुम फैंक.
मातृ भूमि पर शीश चढाने, जिस पर जाएँ वीर अनेक।
-माखन लाल चतुर्वेदी
फूल पर कविता
बच्चों के लिए
प्रेम ( Nov १५, २०१३ )
चाह नहीं प्रेमीमाला में बिंध, प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरि डाला जाऊं
चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ, भाग्य पर इठलाऊँ. .
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पर पथ पर देना तुम फैंक.
मातृ भूमि पर शीश चढाने, जिस पर जाएँ वीर अनेक।
-माखन लाल चतुर्वेदी
फूल पर कविता
बच्चों के लिए
प्रेम ( Nov १५, २०१३ )
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