गुरुवार, दिसंबर 16, 2010

देर आये दुरुस्त आये: "लोकतंत्र एवं सांस्कृतिक विविधता"


जब भी मैं यूरोपी देशों के दोस्तों से बात करता हूँ, उनको ये याद आ ही जाता है कि भारत और यूरोपीय संघ में कितनी समानता है। भारत के बारे में ये बात कब से सच है - ये बताने की जरूरत नहीं। लीजिये देखिये आखिरकार ए़क सेमिनार का आयोजन इस विषय पर भी हो ही गया:


प्रेम

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