बुधवार, अप्रैल 21, 2010

मनुष्य रूप में मृग चर रहे हैं! (कक्ष्या ८ की किताब से )

मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति
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येषाम न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्मः |
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूताः
मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति ||

साहित्य संगीत कलाविहिन:
साक्षात् पशु: पूच्छविशां हीनः
तृणं न खान्नपी जीवमान:
तद्भाग्धेयम परम पशुनाम||

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