रविवार, जुलाई 19, 2009

संस्कृत के श्लोक

1. कुछ श्लोक बच्चों के लिए इकट्ठे किए हैं, पेश हैं:
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न चौर हार्यम न च राज हार्यम, न  भ्रात्रभाज्यम न च भारकारी
व्यये कृते वर्धते नित्यं, विद्या धनं सर्वधनं प्रधानम् ।१।
[Meaning is here]

काक चेष्टा बकोध्यानम, स्वान निंद्रा तथैव च
अल्पहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पञ्च लक्षणं । २।
[Meaning is here]

विद्या ददाति विनयम, विनयात याति पात्रत्वाम
पात्र्त्वात धनमाप्नोति, धनात धर्मः ततः सुखं । ३।
[education makes us humble, employable, well off to donate to be happy]


नैनं छिदंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः,
न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः। ४।
[This s about the Soul, atma: it can not be destroyed even by fire etc].

कर्मनेवाधिकरास्ते मा फलेषु कदाचन
मा कर्मफल हेतुर्भुर्मा, ते सन्गोत्सवकर्मनि। ५।
[We should continue to work sincerely without expecting the results!]

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति  भारतः,
अभुथानाम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्हम।६।
( श्लोक नम्बर ४, ५ एवं ६ श्री मद्भाग्वात्गीता से हैं )
[Its about self corrections of the societies, when there are extremities].

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चित् दुःख भाग्भावेत । ७।
[Let everyone be happy in the world]

गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णू गुरुर्देवो महेश्वर|
गुरु साक्ष्यात परब्रहम्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः||

[The teacher is considered to be a special person! ]


2. Twameywa maata chh pita twamewa, twmeywa bhadhu sch sakha twamewa
twameywa widya dravidam twameywa, twameywa sarwam mam dev deva.

त्वमेव माता  च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव|
त्वमेव विद्या द्रविडं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देवो ||

[How teacher is considered as a friend, like parents and actually everything during the training.  In constant touch with the development of the personality]

3.  सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी ।
विद्यारम्भं करिस्यामि सिध्दिर्भवतु मे सदा ॥
[As Goddess Saraswati is considered to be the source of education, generally this sloka is used while starting learning a new art/ subject/ musical instrument].

सरस्वती मया दृष्टा वीणापुस्तक धारिणी |
हंसवाहन संयुक्ता विद्या दानं करोतु मे||

प्रथमम्भारती नाम द्वितीयञ्च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी।। पञ्चमन्तु जगन्माता षष्ठं वागीश्वरी तथा। सप्तमञ्चैव कौमारी चाष्टमं वरदायिनी।


4.  न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं, न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता, चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।।

  [This appears like a  modern shloka -very critical of life.  It is (one of 6 stanzas)  known as Atmashtakam.
http://en.wikipedia.org/wiki/Atma_Shatkam]


5.  यत्र विद्वज्जनो नास्ति श्लाघ्यस्तत्राल्पधीरपि ।
     निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रुमायते ॥


[अंधों में काना राजा ]


6.  मूर्ख की पहचान :
"मूर्खस्य "पञ्च चिन्हानि" गर्वो, दुर्वचनं, तथा। क्रोधश्च, दृढवाद,श्चपरवाक्येष्वनादरः॥"


7. श्राद्ध , तरपन के बाबत

"जीविते भोजनं नैव, मृते भोजनं शतम्  
जीवितैव हि तृप्तिश्चेत्, ब्रह्मानन्दफलं लभेत्|| "

जीवित परिवार के सदस्य को हो सकता है किसी कारणवश भोजन भी टाइम पर ना मिल पाया हो, लेकिन मृत्यु पश्चात तम्माम (सैकङों) भोज का आयोजन किया जाता है ;
जीवित परिवार के सदस्य की यदि सेवा ढंग से की जाय , तो मनुष्य (नर या नारी ) को अनेकों पुण्य प्राप्त होंगे. ||



8. जन्म -जन्म यदा अभ्यस्ते दानम- च अद्ध्य्नम- तप: ।
तेनैव अभ्यास  योगेन,  देहि च अभ्यस्ते पुन:॥

[ If you keep on practicing the donations, studies and yoga...
Due to these practices , the next life would again keep (at least the part of ) those practices.]



9.  नवरात्रियों के श्लोक :
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || 

१०. सर्व मंगल्य मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके | 
शरण्ये त्रियम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||


११. कांक्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्ते इह देवताः |
क्षिप्रं ही मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा || १२|| (४)|| 
सिद्धिर्भवति कर्मजा is motto of IIT Madras ). Now you know that it is adapted from 12th Shloka of 4th chapter of Gita. (Mr. C B Pande had enlightened me on this in 2000).

Rishi Charvak:
12. यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ||
(Enjoy- even by taking loan!  not true now).

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